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Friday, December 16, 2016

दरद दिसावर

  तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर । दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥ लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस । राम भलाईँ मौत दे मत दीजै प्रदेश || ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय। म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥ जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार । काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥ इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर । घिरता फिरता पावणा घर घर थारो सीर ॥ आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात । उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥ जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ । देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥ दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास । पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥ साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ । चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥ पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश । प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥ काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत । पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥ मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग । मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।। सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर । म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥ जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात । बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥ पैली तारिख लागताँ जागै घर ओ भाग । मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग ॥ फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल । चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल ॥ घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् । दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥ चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर । गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर ॥ चपडासी है सा’ब रो बूढो ठेरो बाप । बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥ बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत । घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत ॥ भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत । परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत ॥ गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज । परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज ॥ बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव । चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।। बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत। बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।| लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार । बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार ॥ मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव । म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव ॥ मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज । मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥ बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक । गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख ॥ दादोसा पुचकारता दादा करता लाड । पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।। मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप । जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप ॥ जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम । गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम ॥ गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह । सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥ कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात । रात हमेशा आवती रात नै आयी रात ॥ आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत । मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥ दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम । च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम ॥ सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद । प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद ॥ नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट । चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट ॥ प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ । दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ ॥ पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम । उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम ॥ दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम । इण कातिक तो आ घराँ ओ ! परदेसी राम ॥ जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव । म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव ॥ जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक । म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक ॥ मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग । उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥ बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर । जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर ॥ बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय । साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥ बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार । मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥ नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास । सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास ॥ सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ । मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ ॥ सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप । सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप ॥ खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम । बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम || कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार । जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥ अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ । हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥ खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट । बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट ॥ देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ । बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।। ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव । संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव ॥ गाता गीत न गा सक्या करता करया न कार । जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार ॥ ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस । बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस ॥ समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग । गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।। सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ । बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।। हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात । तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात ॥ रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार । परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार ॥ साखीणो संसार है कद तक राखा साख । साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख ॥ तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर । दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥ ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव । महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव ॥ बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख । छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख ॥ जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण । गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण ॥ प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल । भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥ प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान । आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान ॥ हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम । किण री पूजा मै करू गूगो बडो क राम ॥ बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट । घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ ॥ मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट । पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट ॥ किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात । टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात ॥ सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ । घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ ॥ जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत । दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत ॥ फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह । सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह ॥ होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव । कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव ॥ टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज । इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज ॥ टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार । राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार ॥ निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग । राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग ॥ उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात । गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात ॥ ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव । तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव ॥ सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव । पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव ॥ पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर । झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर ॥ छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब । पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब ॥ जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर । दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर ॥ प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद । सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥ पाती लिख रियो गांव नै अपरंच ओ समचार । दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार ॥ राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान । घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान ॥ घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख । ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥ बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव । ’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव ॥ लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज । पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज ॥ गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण । देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।। जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव । आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव ॥ के तडपासी बादळी के कोयल री कूक । पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक ॥ अजब पीर परदेस री म मर जीवै जीव । घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।। ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज । घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज ॥ घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत । मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत ॥ धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम । करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम ॥ बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप । दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप ॥ ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग । भरी न अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग ॥ जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद । दरद दिसावर ई कडया रोज करैलो याद ॥ कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव । परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव ॥

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