गांव में एक लुगाई बुहारी निकाळ रैयी थी ।चौक में उण
रो धणी बैठ्यो थो। बा बुहारी काडती-काडती उणरै कनै आई
तो बोली, 'परै सी सरकियो ।'
आदमी उठकै पौळी में आगो। लुगाई भी बुहारी काडती-
काडती पौळी में आगी और धणी नै बोली, 'आगै नै
सरकियो दिखां ।'
आदमी बारलै चौक में आगो। थोड़ी ताळ पछै बठै भी आगै
सरकणै की बात कैयी । बो उठकै घरां रै बारणै दरूजै पर
आगो अर चबूतरै पर बैठगो । लुगाई बुहारती-बुहारती घरां कै
बारै आई तो पति नै बोली, 'सरकियो दिखां।'
आदमी आखतो होय'र मुंबई चल्यो गयो । बठै सूं
चिट्ठी लिखी- 'अब भी तेरै अड़ूं हूं कै और आगै सरकूं? आगै
समंदर है, देख लिए।'
Saturday, August 8, 2015
राजस्थानी लुगाई
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