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Sunday, October 2, 2016

बाजरिया थारो खिचङो लागे घणो स्वाद

बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद खीचड़ो आपणो खास खाजो। आखातीज नै खास तौर सूं घर-घर रंधै। स्वाद रो कांईं लेखो। मोठ-बाजरै रो खीचड़ो खांवता-खांवता को धापै नीं। खीचड़ै पर आपणी भाषा में मोकळा गीत। ओ लोकगीत भी घणो चावो। लिखारै रो नांव तो ठा कोनी पण आपणै तांईं मांड'र भेज्यो है सूरतगढ़ सूं भाई रोहित सारस्वत। बांचो सा! बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद। लागै घणो स्वाद, लागै घणो स्वाद।। टीबां बायो बाजरो, रेळां में बाया मोठ, गौरी ऊभी खेत में, आ कर घूंघट की ओट। बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।। गेहूवां कै फलकां की म्हे तो, खावां जेटमजेट, खीचड़ा कै दो चाटू सूं, भरज्या म्हां को पेट। बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।। खदबद हींजै खीचड़ो, नै फदफद हींजै खाटो, ल्या ए छोरी सोगर खातर, बाजरियै रो आटो। बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।। घर आया जद पावणां, नै रांध्यो खीचड़ खाटो, खाटो, इण खाटै नै देखनै बो आज जंवाई न्हाटो। रै बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।। आज रो औखांणो खीचड़ै री जितरी महिमा करी जावै कम। पण आम बोलचाल में जिका औखांणा चलै बै इणनै हळको अर हीणो गिणावै। जदी तो कोई निरभागी आदमी सारू आ कहावत कैवै- करमहीण किसनियो, जान कठै सूं जाय। करमां लिखी खीचड़ी, खीर कठै सूं खाय।।

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