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Sunday, July 26, 2015

खेत के गेलॆ मे ( राजस्थानी कविता)



म्हने याद है
खेत के गेळै मे
तू चाळै ही आगे-आगे
मै चाळो हो थारै गैळ -गैळ

रास्ते में
थारो ओढणो झाड़का के
काँटा में उलझग्यो

तू देख्यो कि
मै थारो पल्लो पकड्यो है
तू झट बोल पड़ी---

हे रामजी!
थे तो रस्ते में ही---
अबार माथो उघड़ ज्यावंतो

मै उछलग्यो
अर देखबा लागग्यो
थारो मुंडो

ईतना में तू
बोल पड़ी ---

मरज्याणा
बाळणजोगा
ऐ झाड़का ही
थारै दांई हुग्या।

मारवाङी कविता -,ओ म्हारो गाँव हे !,

       "दुगस्ताऊ"
ओज्यूं पींपळ री छांव है
मघली-जगली नांव है
बूक हथाळ्यां ठांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


जद दिन बिसूंजै
जगै दीया
चांद रै चानणै
टींगर खेलै दडी़ गेडिया ।
बिजळी रै खम्बां
भैंस बंधै
तारां री बणै तण्यां
बिजळी रो खाली नांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


करसां बोवै
साऊ खावै
बापू रै नारां रो
गांव में खाली नांव है
बिजळी कड़कै
ठंड पडै़ करसां खसै खेत में
खातां में ज़मींदार रो नांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


अंगूठां री नीं सूकी स्याई
मघली जाई
जगली परणाई
मा गैणां रख रिपिया ल्याई
साऊकार री बै’यां में
म्हारी सगळी पीढी रो नांव है
गांव सगळो पड्यो अडाणै
बैंकां रो खाली नांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


क-मानै करज़ो
ख-खेतां खसणो
ग=गरीबी
घ-घरहीण
इस्सी बरखडी़
गांव री चौपाळ है
पांच सूं पच्चीस रा टींगर
खेतां-रो’यां चरावै लरडी़
माठर फ़िरै सै’र में
गांव में स्कूल रो खाली नांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


अणखावणां-अणभावणां
बणै नेता बोटां रै ताण
ठग ठाकर है म्हारा
गेडी रै ताण
अडाणै री कहाणी कै
खेत दबाणै री बाणी दै
घेंटी मोस बोट नखावै
जीत परा फ़ेर ढोल बजावै
लोकराज रो खाली नांव है
हां जी, ओ म्हारो गांव है !


अंटी ढील्ली
खेत पाधरो

अंटी काठी

खेत धोरां पर

अळगो-आंतरो

मंतरी री सुपारसां

खेत मिलै सांतरो

खेत-खतोन्यां

हक-हकूकतां

ज़मींदार रै हाथ में

गांव बापडो़ फ़िरै गूंग में

चारूं कूंटां पटवारी रो दांव है

हां जी, ओ म्हारो गांव है !





Saturday, July 25, 2015

दरद दिसावर

लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस । 
राम भलाईँ मौत दे मत दीजै प्रदेश || 

ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय। 
म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥ 

जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार । 
काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥ 

इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर । 
घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥ 

आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात । 
उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥ 

जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ । 
देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥ 

दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास । 
पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥ 

साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ । 
चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥ 

पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश । 
प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥ 

काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत । 
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥ 

मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग । 
मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।। 

सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर । 
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥